अलफाजे मुतशाबेह

अलफाजे मुतशाबेह की तावील

इस किस्म के अलफाज में तावील की जाती है क्यूं कि उनका जाहिर मुराद नहीं के उसके हक में मुहाल है।मसलन यद की तावील कुदरत से वजहहु कि तावील जात से,इसतेवा कि तावील गलबा व तवजजुह से कि जाती है लेकिन बेहतर व असलम यह है कि बेला जरूरत तावील भी न की जाए बल्कि हक होने का यकीन रखे और मुराद को अल्लाह के सुपुर्द करे कि वही जाने अपनी मुराद हमारा तो अल्लाह व रसूल के कौल पर इमान है के इसतेवा हक है ,यद हक है और उसका इसतेवा मखलूक का सा इसतेवा नहीं ,उसका यद मखलूक का सा यद नहीं ,उसका कलाम ,देखना, सुन्ना मखलूक का सा नहीं ।

अल्लाह तआलाकी जात व सिफात न मखलूक हैं न मक़दूर।
क्या चीजें हादिस हैं और क्या कदीम?
जात व सिफाते इलाही के इलावा जितनी चीजें हैं सब हादिस है यानी पहले न थीं फिर मौजूद हुईं।
सिफाते इलाही को मखलूक कहना या हादिस बताना गुमराही व बद दिनी है।
जो शख्स अल्लाह तआला की जात व सिफात के इलावा किसी और चीज को कदीम माने या आलम के हादिस होने में शक करे वह काफिर है ।
जिस तरह अल्लाह तआला आलम और आलम की हर चीज का खालिक है उसी तरह हमारे अमाल व अफआल का भी वही खालिक है ।

अल्लाह तआला की खालिकियत, वोजूब खुद का माअना :
अल्लाह तआला वाजिबुल वजूद है ,यानी उसका वजूद ज़रूरी और अदम मुहाल ।
अल्लाह तआला का इल्म व इरादा :
कोइ चीज अल्लाह तआला के इल्म से बाहर नहीं ,मौजूद हो या मादूम ,मुमकिन हो या मुहाल कुल्ली हो या जुज़ई सब को अज़ल में जानताथा और अब जानताहै और अबद तक जानेगा ।
चीजें बदलती हैं लेकिन उसकाइल्म नहीं बदलता।दिलों के खतरों और वसवसों की उसको खबर है उसके इल्म की कोई इन्तेहा नहीं।
अल्लाह तआला की मशियत  व इरादा के बगैर कुछ नहीं हो सकता मगर अच्छे पे खुश होता है और बुरे पर नाराज़।

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